सोमवार, 7 जून 2010

म्हारो अलहदो घर !

मोवणी  धरती,
नीलो आभो
जठै गळै मिलै
हरियाळी चादरै
ज्यूं जड़ियो
इक मोती
वो म्हारो घर !
चिड़कलियां चैचावे
कोयल कुहूकै
मोर हरखावै
काचो कंवळो बायरो
किवाड़ खड़कावै
 म्हारो अलहदो घर !
आळै में जगतो
एक दीवो
मुळकती बाती
अर म्हारो
जनम जनम रो साथी
निस्संग हूं
उणरै साये ............
किरण राजपुरोहित नितिला