बुधवार, 1 जुलाई 2020

  • कविता
    प्रेम*

प्रेम पर सबसूं बत्तो रचिजियो
पण प्रेम सदीव कमती रैयो

हर कोई प्रेम चावै
पण दूजो प्रेम करै
ओ मन नीं भावै

प्रेम री खोज अंंतहीण
प्रेम ई अंतहीण

ज्यां सोधै त्यां तिरपत
ज्यां तिरपत त्यां तिरसो

प्रेम रै मन
प्रेम नीं भावै
प्रेम कैवे'क
थूं फगत म्हारो


प्रीत नैं रीत नीं भावै
रीत में नीरस हु जावै

दुनिया नैं प्रीत नीं सुहावै
वा मारखणी हो जावै

प्रेम कैवे
नैङो रैय
ओरूं नैङो
ओरूं...
गै'रो प्रेम गळौ टूंपै
टूंपिजतो प्रेम
मंदो हु जावै


बात रा छांटा
प्रेम रा छांटा
बात करो...
बात करो..
बात करो...

प्रेम घटना शाश्वत
प्रेम पर प्रहार भी शाश्वत

प्रेम
ज्यूं-ज्यूं बधै
टोक बधै
रोक बधै
सो क्यूं पछै
बधर जावै

..... किरण राजपुरोहित 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें