मोवणी धरती,
नीलो आभो
जठै गळै मिलै
हरियाळी चादरै
ज्यूं जड़ियो
इक मोती
वो म्हारो घर !
चिड़कलियां चैचावे
कोयल कुहूकै
मोर हरखावै
काचो कंवळो बायरो
किवाड़ खड़कावै
म्हारो अलहदो घर !
आळै में जगतो
एक दीवो
मुळकती बाती
अर म्हारो
जनम जनम रो साथी
निस्संग हूं
उणरै साये ............
किरण राजपुरोहित नितिला
सोमवार, 7 जून 2010
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चोखी कविता...
जवाब देंहटाएंi can understand a little bit , but nice
जवाब देंहटाएंकिरण ji bahut khub
जवाब देंहटाएंpuri tarha marwadi me kuch shabdo ko ched baki aap ki bhavnao ko samjhne ki kosis hui
आळै में जगतो
जवाब देंहटाएंएक दीवो
मुळकती बाती
अर म्हारो
जनम जनम रो साथी
घणी उंडी बात कह दी थ्हे।
मुळकती बाती-वाह गजब
राम राम
मोवणी धरती,
जवाब देंहटाएंनीलो आभो
जठै गळै मिलै
हरियाळी चादरै
ज्यूं जड़ियो
इक मोती
वो म्हारो घर !
किरण जी . प्रणाम !
म्हणे आपरी ऊपरली ओल्या आच्छी लागी इण सारु आप ने मोकली बधाई ,
साधुवाद
आदरजोग भाभीसा
जवाब देंहटाएंघणैमान पगैलागणा !
आपरै ब्लॉग पर आ'र ब्होत आछो लाग्यो ।
… अर आप इसी फूठरी कवितावां भी करो ?
वा' सा वाह !
आळै में जगतो
एक दीवो
मुळकती बाती
अर म्हारो
जनम जनम रो साथी
निस्संग हूं
उणरै साये ............
परमातमा आप री गिरस्थी नैं मोकळी आशीषां बखसै !
…अर आप री लेखणी री पाण सवाई राखै सा !!
कदै टैम निकाळ'र इण टाबर नैं ई आशीष दे'ण नैं शस्वरं पर पधारो तो घणी मै'र … !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बाईसा,
जवाब देंहटाएंआ करी नै बात... आपरी राजस्थानी कविता आपरै उर्दू/हिंदी कवितावां सूं दो पाळा आगै लखावै. हकिकत में आपरै चिंतन रौ कोई जवाब कोनी हुकम.... लाग्या रेवौ सा... जद राजस्थानी राजस्थानी री प्रथम राजभासा बणैला उण बगत आपरी कवितावां पोसाळां री पोथ्यां में जरुर छपैला एड़ी म्हनै आशा है.
लखदाद!