शनिवार, 17 जुलाई 2010

इक कसक....

इक कसक....
दोस्त दोस्त नी रेवे तो कांइ
उणने दुस्मन मान लां?
ठाडी ठाडी दोस्ती निबाहता
बरस गुजार लां?
उजर है थांरी केइ बातां सूं
तो ओळमो दे दूं?
नानकी सी इक वात सारु
दोस्त गुमा द्‌यूं!!!
सागे सागे हा पण मन सूं मन
रा आंतरा घणा
थे मानो, म्हे नी मानूं क
दोस्त दुनिया में मोकळा
सोध र देख ल्यो
यद म्हार सो इक इ लाधे
सागे हा हर काज में
एक अेहम सूं अळगा होया
 म्हे तो भूलगी पण
थे अकड़ र हो बैठ्‌या
ओ इज करनो हो तो सुणो
इक वात म्हारी सुणजो
मनै तो ठीक है पण
दूजां पर रैहम करजो
...............किरण राजपुरोहित नितिला

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